UB DESK: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2020 के अपने अंतिम मन की बात कार्यक्रम में झारखंड की संरक्षित कोरवा जनजाति के बारे में जिक्र किया. प्रधानमंत्री मोदी ने इस भाषा और जनजाति के लोगों के लिए काम करने वाले हीरामन का जिक्र किया और उनके काम की तारीफ की.
प्रधानमंत्री मोदी ने कोरवा जनजाति को लेकर मन की बात कार्यक्रम में बताया कि “12 साल की कड़ी मेहनत के बाद झारखंड के कोरवा जनजाति के हीरामन ने विलुप्त होने के करीब कोरवा भाषा का एक शब्दकोश तैयार किया है. उन्होंने इस शब्दकोश में दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले कई शब्दों को भी शामिल किया है. कोरवा जनजाति के लिए हीरामन ने जो किया है वह देश के लिए एक अद्भुत उदाहरण है.”
गढ़वा जिलांतर्गत रंका थाना क्षेत्र के सुदूरवर्ती सिंजो गांव निवासी हीरामन कोरवा ने 12 साल के अथक परिश्रम के बाद ऑस्ट्रो-एशियाई परिवार की जनजातीय कोरवा भाषा का शब्दकोश लिखा है.
भारतीय उपमहाद्वीप में अलग-अलग भाषाई समुदायों की एक बड़ी संख्या है, जो आदिम काल से बदलते दौर के साथ सामंजस्य बिठाकर अपनी भाषा संस्कृति को सहेज कर रखे हुए हैं. इसी क्रम में गढ़वा जिले के रंका थाना क्षेत्र के सुदूरवर्ती सिंजो गांव निवासी हीरामन कोरवा ने 12 साल के अथक परिश्रम के बाद ऑस्ट्रो-एशियाई परिवार की जनजातीय कोरवा भाषा का शब्दकोश लिखा है.
50 पन्नों का बनाया है शब्दकोश
पीएम मोदी ने बताय कि हीरामन ने 12 वर्षों की कटिंग परिश्रम से 50 पन्नों का एक शब्दकोश तैयार किया है, जिसमें दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली सभी वस्तुओं का नाम कोरवा भाषा में लिखा गया है. कोरवा जनजाति की उपजाति हरिया और पहाड़ी कोरवा मुख्य है. पहाड़ी कोरवा को बंदरिया भी कहा जाता है. कुछ शोधों में इस जनजाति को कौरवों का वंशक भी कहा गया है. इनकी जनसंख्या इतनी कम है कि इन्हें परिवार नियोजन से भी मुक्त रखा गया है.
50 पन्नों के इस शब्दकोश में पशु पक्षियों से लेकर सब्जी, रंग, दिन, महीना, घर गृहस्थी से जुड़े शब्द, खाद्य पदार्थ, अनाज, पोशाक, फल सहित घर गृहस्ती से जुड़े तमाम शब्दों को संकलित किया है.
हीरामन आर्थिक तंगी और कठिन मेहनत से लिखित 50 पन्नों के अपने शब्दकोश
पेशे से पारा शिक्षक हीरामन बताते हैं कि समय के साथ समाज के लोग कोरवा भाषा को भुलने लगे हैं जो बात उन्हें बचपन से ही कचोटती थी. हीरामन बताते हैं कि जब उन्होंने होश संभाला तभी से उन्होंने कोरवा भाषाओं को एक डायरी में लिपिबद्ध करने का काम शुरू कर दिया था. आर्थिक तंगी के कारण 12 साल तक यह शब्दकोश डायरियों में सिमटे रहे. फिर आदिम जनजाति कल्याण केंद्र गढ़वा और पलामू के मल्टी आर्ट एसोसिएशन के सहयोग से कोरवा भाषा शब्दकोश छप सका.
गौरतलब है की देश में फिलहाल तकरीबन 8.2 प्रतिशत जनजातीय आबादी है और सभी के पास समृद्ध संस्कृति और भाषाएं हैं। झारखंड में कुल 32 जनजातियां हैं. उनमें से नौ जनजातियां कोरवा सहित अन्य आदिम जनजाति वर्ग में आती हैं। 2011 में कोरवा आदिम जनजाति की आबादी 35 हजार 606 के आसपास थी. यह आदिम जनजाति मुख्य रूप से पलामू प्रमंडल के रंका, धुरकी,भंडरिया, चैनपुर, महुआटांड़ सहित अन्य प्रखंडों में निवास करती है.
इसमें कोई संदेह नहीं की हीरामन द्वारा लिखित कोरवा भाषा शब्दकोश कोरवा भाषा को संरक्षित और समृद्ध करने में मील का पत्थर साबित होगी तथा यह जनजातीय समुदाय की अस्मिता तथा सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान को बनाये रखने में मददगार साबित होगी.
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